कविता

मीत

 

तुम्हारी देह में मेरी देह का
तुम्हारे मन में मेरे मन का
तुम्हारी रूह में मेरी रूह का
तुम्हारे ख्यालों में मेरे ख्यालों का
तुम्हारे सपनों में मेरे सपनों का
रहेगा अब आना जाना

तुम मुझसे मुलाकात
करने के लिये
ढूढोंगी रोज नया बहाना

भीतर ही भीतर रहोगी भयभीत
यह सोचकर की
कोई जान न ले यह
रहस्यमय अफ़साना

हर मोड़ ,हर गली ,
या हो हर चौराहा
नदियाँ हो ,दरिया हो
या हो
कंदराओं का एकांत ठिकाना
चाहेंगें मुझे तुमसे मिलवाना

तुम्हारे घर से जब भी
होगा मेरा सामना
दरवाज़ा कहेगा
मुझे तुम मत खटखटाना

तुम्हारे शहर के सड़कों के
किनारे खडे दरख़्तों के
सायों ने सीख लिया हैं
तुम्हारे सिवाय
सबकी नज़रों से मुझे छिपाना

तुम्हारे अधरों का
मेरे अधरों ने नहीं किया हैं
सचमुच में मधुपान
मैं तो कहता हूँ
प्यार हैं सिर्फ एक अनुमान
तभी तो तुम
कहती हो मुझे एक
सरफिरा दीवाना

यूँ बीत जायेगी सदियाँ
प्रत्येक जनम में
मेरे अपरिचित रूप को
देखकर तुम कहोगी
लगता हैं
यह शख्स जाना पहचाना

तुम्हें स्मरण कर
लिखता रहूँगा
कभी गीत ,कभी नज्म
या छेड़ता रहूँगा
तुम्हारे मन अनुकूल तराना

कभी किसी किताब में
या किसी अखबार के टुकड़े में
पढ़कर कह उठोगी
अरे ये तो मेरे ही मन के भाव हैं
ये कवि तो
मानो मेरा मीत हैं कोई पुराना

किशोर

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

3 thoughts on “मीत

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मज़ा आ गिया कविता पड़ के , बहुत अच्छा लिखते हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर कविता !

  • गुंजन अग्रवाल

    sundar rachna

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