ग़ज़ल
ज़िन्दगी में नित नये अब राग गुंजाने लगे नित नये रंगों में नूतन स्वप्न हर्षाने लगे भर दुपहरी कूजती कोयल
Read Moreपुण्य हो गए शून्य मात जगदंबा बोली बढ़ गया पापाचार कि देखो धरती डोली उजड़ गया घर बार, मिला सब
Read Moreभाव हमारे चित्र तुम्हारे दोनों एकाकार हो गए शब्दों की माला में गुँथ कर नीलकंठ का हार होगए शिल्पी ने
Read Moreअगले दिन दीपावली थी लेकिन छावनी में कहीं भी चहल-पहल नहीं थी । 1987 में मेरे पति भी भारतीय शान्ति
Read Moreअनुभा धीरे धीरे न्यायालय के मुख्य द्वार से बाहर आई और अपने माथे पर छलक रहे स्वेद कणों को आँचल
Read Moreओलों की बरसात से फसल हुई है नष्ट देख फसल की दुर्दशा बहुत हुआ है कष्ट
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