लघुकथा

लघुकथा : टूटे पंख

अनुभा धीरे धीरे न्यायालय के मुख्य द्वार से बाहर आई और अपने माथे पर छलक रहे स्वेद कणों को आँचल से पोंछा । एक लम्बा उच्छ्वास लेकर वह पार्किंग की ओर थके हुए कदमों से चल पड़ी। सहसा उसे अपने कंधे पर चिर परिचित कोमल स्पर्श का आभास हुआ, पिता के कमजोर बूढ़े हाथ उसे सांत्वना दे रहे थे। उसने हौले से सिर हिलाकर स्वीकृति दी तथा कार की चाबी पिता को थमा दी और स्वयं कार की ओर बढ़ गई।

कार धीरे धीरे अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रही थी। अनुभा अब और संयम न रख सकी, उसकी आँखें फिर से छलक पड़ीं।

“बेटी हिम्मत रखो, मनु हमें अवश्य मिलेगा ।”

“पर पापा ! मनु कैसे रहेगा, मेरे बिना ”

“जैसे वह अपने पापा के बिना अब तक रहा है, कल न्यायालय का अन्तिम निर्णय है, ईश्वर पर विश्वास रखो ”

कार ने गति पकड़ ली थी और अनुभा के मन ने भी, स्मृतियां उसे आठ वर्ष पूर्व ले गईं। ढोलक की थाप पर लोकगीत गाती सगे संबंधियों के बीच माँ सबसे बधाई ले रही थीं । मनु के जन्म की खुशी में सब आनन्दित थे। अचानक मोबाइल पर आये एक संदेश ने सब खुशियां छीन लीं, ढोलक की थाप, माँ की मुस्कान अनु के सपने, सब कुछ । पिता ने बस इतना ही कहा था कि ” विवेक………… नहीं रहा, वीर गति को प्राप्त हो गया।” सन्नाटा……. नितांत शून्य, समय जैसे थम गया था।udaan

अचानक कार रुकने पर उसके विचारों का तारतम्य टूट गया। पिता का अनुसरण कर वह कार से उतरी और घर में प्रवेश किया । पर घर के अन्दर के दृश्य को देख कर उसे अपने भाग्य पर विश्वास नहीं हुआ। सामने विवेक के मातापिता मनु को लिए खड़े थे। विवेक के पिता ने आगे बढ़ कर अनुभा के हाथ थाम लिये।

“अनुभा मनु तुम्हारा है और वह हमेशा तुम्हारा ही रहेगा । हमने बेटे को खोकर जान लिया कि मनु के बगैर हम में से कोई भी नहीं जी सकेगा। अब अपने घर चलो बेटी।”

अनुभा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था । मनु कम्प्यूटर पर अपना मन पसंद कार्टून देख रहा था। उसने पापा की ओर प्रश्न भरी दृष्टि से देखा। पिता के मुस्कराते चेहरे को देख कर सहमति में हौले से सिर झुका दिया। उसके टूटे पंखों को उड़ान जो मिल गई थी।

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

5 thoughts on “लघुकथा : टूटे पंख

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    बहुत ही मार्मिक कहानी

  • अच्छी कहानी और इस में एक सन्देश भी है , अगर लोग समझ सकें तो .

    • लता यादव

      पसन्द करने के लिए बहुत आभार आदरणीय

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कहानी !

    • लता यादव

      पसन्द करने के लिए धन्यवाद

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