पीड़ा के प्रकोष्ठ
दो कमरों के घर में जन्मी और अब तक दो कमरों के घर में रह रही स्मिता के मन में
Read Moreदो कमरों के घर में जन्मी और अब तक दो कमरों के घर में रह रही स्मिता के मन में
Read Moreइच्छा थी इस जग के हेतु, कुछ तो करके जाऊं, और नहीं तो धन्यवाद के , गीत ही कुछ गा
Read Moreमधुर मुझे मन मीत मिला उर का सुमन सप्रीत खिला- कब से थी आकांक्षा आए कोई मन का
Read Moreए जी स्वेटर नीला है- (2) तेरी कमीज का रंग प्यारे चुन्न-मुन्न पीला है- (2) दो आम दशहरी हैं-
Read Moreफूल हैं खिलते रंग-बिरंगे, मौसम होता है जब अच्छा, दिल सबका खुश होता देख के, लाल गुलाब का प्यारा गुच्छा.
Read Moreएक पेड़ के नीचे बैठा, हाथी था एक बहुत बड़ा, उसे सोच में बैठा देखकर, बंदर झट से बोल पड़ा.
Read Moreयह दुनिया दुख का सागर है, सुख कहां मिला और किसे मिला! यहां केवल कष्ट उजागर है, है केवल शिकवा
Read Moreकविता मैं पतंग बन जाऊं मेरा मन है कि मैं पतंग बन जाऊं मकर संक्रान्ति और पतंगोत्सव की पावन
Read Moreआज सुगंधा की रिटायरमेंट की पंद्रहवीं सालगिरह है, लेकिन उस दिन की स्मृतियों और रिश्तों की गर्माहट को वह पिछले
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