Author: *मदन मोहन सक्सेना

गीतिका/ग़ज़ल

रंग बदलती दुनिया

रंग बदलती दुनिया सपनीली दुनिया मेँ यारों सपनें खूब मचलते देखे रंग बदलती दुनिया देखी ,खुद को रंग बदलते देखा सुबिधाभोगी को तो

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गीतिका/ग़ज़ल

सबकी ऐसे गुजर गयी

हिन्दू देखे, मुस्लिम देखे, इन्सां देख नहीं पाया मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में, आते जाते उमर गयी अपना अपना राग लिये

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गीतिका/ग़ज़ल

रंग बदलती दुनिया देखी

  सपनीली दुनिया मेँ यारो सपने खूब मचलते देखे रंग बदलती दुनिया देखी , खुद को रंग बदलते देखा सुविधाभोगी को

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल (सपने खूब मचलते देखे)

सपनीली दुनियाँ मेँ यारो सपने खूब मचलते देखे रंग बदलती दूनियाँ देखी, खुद को रंग बदलते देखा सुविधाभोगी को तो

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