कविता~ जल रहा दीप
जल रहा दीप मद्धम मद्धम मन पुलक रहा चंदन चंदन। खोल रहे दृग सुमन द्वार मचल रहा दिल बन बहार
Read Moreजल रहा दीप मद्धम मद्धम मन पुलक रहा चंदन चंदन। खोल रहे दृग सुमन द्वार मचल रहा दिल बन बहार
Read Moreसोहन बहुत ही कोमल ह्रदय का प्रकृति प्रेमी बालक था। पर्वत, झरने,नदियाँ,पशु-पक्षी सब उसको बहुत पसंद थे।पर्वत से गिरते झरनों
Read Moreमंदिर की सीढ़ियों पर बैठे बैठे आज सुरेखा अतीत की यादों में खो गयी। उसे याद आ गया वो दिन
Read Moreलखनऊ के महानगर इलाके में जहाँ मैं रहती थी वहाँ हमारे पड़ोस का घर काफी समय से खाली पड़ा था।
Read Moreमधुर मधुर मधुमास खिला मन पुलकित उल्लास मिला। भासमान है सूर्य बिम्ब चल रहा साथ निज प्रतिबिम्ब। प्रकृति ओढ़ी है
Read Moreतोड़ व्यथा मेरी प्रिय तुमने नेह तरंग लहराई है गीत प्रेम के आज गा रही स्निग्ध भावना आई है। मत
Read Moreआज हुई मुझे सत्य की पहचान ज्ञान हुआ मुझे पुरुषार्थ का मुक्ति का प्रकाश का। पहचान गयी मैं मिथ्या भ्रम
Read Moreजीवन का आधार ये मिट्टी ऊर्जा का संचार ये मिट्टी। छाती पर सब वहन है करती देश का दुलार ये
Read Moreज़िन्दगी आदि से अंत तक शाश्वत किन्तु क्षणिक विस्तृत किन्तु संक्षिप्त विचित्र किन्तु सत्य अलबेली किन्तु नित्य चिर-परिचित किन्तु अकाल्पनिक
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