संस्मरण

संस्मरण : एक कसक

लखनऊ के महानगर इलाके में जहाँ मैं रहती थी वहाँ हमारे पड़ोस का घर काफी समय से खाली पड़ा था। अचानक एक दिन पड़ोस में से कुछ आवाज़े सुनाई पड़ी तो मैं व मेरे बड़े भाई अपने घर का दरवाज़ा खोलकर देखने लगे। पता चला कि वो घर किसी ने खरीद लिया। हम खुश हो गए कि अब रौनक हो जायेगी। दूसरे दिन उनका सामान आगया और तब मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा जब मैंने रिक्शा से उतरते हुए हम उम्र तीन लड़कियों को देखा। उस समय मैं नवीं कक्षा में थी।

उनसे परिचय हुआ और धीरे धीरे उनसे मित्रता हो गयी। तीन लड़कियों में से दो ने मेरे ही स्कूल में प्रवेश ले लिया। बीच वाली लड़की जिसका नाम कृष्णलता था वो मेरी उम्र की थी। उसको मेरी ही कक्षा में प्रवेश मिला। अब तो रोज़ विद्यालय हम साथ जाते और आते। इस तरह मित्रता गहरी होती गयी। अपने मन की हर बात हम एक दूसरे को बताते। हमने साथ ही बी.ए. तक पढाई की। उसके बाद मैंने लखनऊ विश्वविद्यालय में लॉ में प्रवेश लिया और उसने महिला कॉलेज में एम् ए में पर हमारी दोस्ती वैसी ही बनी रही।

कुछ समय पश्चात उसकी शादी हो गयी और वो सीकर राजस्थान चली गयी और मैं शादी हो कर जबलपुर मध्यप्रदेश चली गयी। उस समय फ़ोन भी बहुत कम घरों में होता था । हमारे घर में भी नहीं था पर पत्राचार के माध्यम से हमने एक दूसरे से संपर्क बनाये रखा। जहाँ वो दो बेटों की माँ बनी वहीँ मुझे भी एक बेटी और बेटे की माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

धीरे धीरे घर गृहस्थी के चक्कर में पत्रों का आदान प्रदान कम हो गया और फिर लगभग समाप्त ही हो गया। बच्चे भी बड़े हो गए। इतना पता चल गया था मुझे की वो सीकर से लखनऊ आगयी है और वहाँ इंदिरा नगर में रहती है। मैं भी जबलपुर से देहली आगयी थी। मेरे माता पिता भी भाई के पास देहली आगये थे। इस तरह मेरा लखनऊ जाना ही बंद हो गया। बहुत वर्षों तक हमारा कोई संपर्क नहीं हुआ किन्तु मैं उसको भूली नहीं थी।

कई वर्ष बाद मुझे किसी विवाह में लखनऊ जाने का अवसर प्राप्त हुआ। मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। मैंने सोचा कि अब मैं कृष्णलता से अवश्य मिलूँगी। ये सोच कर कि उसको चौका दूँगी मैंने उसको कोई खबर देने की कोशिश नहीं की। जिस दिन लखनऊ पहुँची शादी भी उसी दिन थी। ये सोचकर कि बारात तो शाम को निकलेगी मैंने उससे मिलने का मन बना लिया।

लेकिन उसके घर का पता मेरे पास नहीं था इसलिए मैं महानगर चली गयी कि उसकी माता से पता ले लूंगी। जहाँ मैं इतने वर्ष रही उस स्थान को देखने की उमंग भी थी। इतने सालों बाद लखनऊ गयी थी। काफी कुछ बदल गया था। सारा इलाका बहुत भरा हुआ लग रहा था। खैर अंत मे मैं उनके घर पहुँच गयी। उसकी माँ और भाभी ने मुझे देखते ही गले से लगा लिया। बहुत खुश हुईं वो।

थोड़ी देर बाद मैंने उनसे कृष्णलता का पता माँगा। तो वो बोली किसका पता मांग रही हो? तुम्हारी सहेली अब नहीं रही। तीन वर्ष पहले ही अचानक छोड़ कर चली गयी। मुझे काटो तो खून नहीं। हतप्रभ रह गयी। कुछ समझ नहीं पायी कि ये क्या हुआ। मैं तो उसको चौंकाना चाहती थी पर यहाँ तो मैं ही आश्चर्यचकित रह गयी। लखनऊ आने का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया। मुझे लगा जैसे मैं कुछ हूँ ही नहीं। गहन निराशा और दुःख में डूब गयी।

दुःख से लुटी पिटी सी मैं वापस बारातघर पहुँची किन्तु समझ नहीं आया कि विवाह में शामिल होने की ख़ुशी मनाऊँ या अपनी सबसे प्रिय सहेली को खोने का दुःख। उससे मिलने की, बात करने की ख्वाहिश दिल की दिल में रह गयी। आज भी उस गहरे दुःख की कसक बनी हुई है।

— नीरजा मेहता

नीरजा मेहता

नाम-----नीरजा मेहता ( कमलिनी ) जन्मतिथि--- 24 दिसम्बर 1956 वर्तमान/स्थायी पता-- बी-201, सिक्का क्लासिक होम्स जी एच--249, कौशाम्बी गाज़ियाबाद (यू.पी.) पिन--201010 मोबाइल नंबर---9654258770 ई मेल---- mehta.neerja24@gmail.com शिक्षा--- (i)एम.ए. हिंदी साहित्य (ii)एम.ए. संस्कृत साहित्य (iii) बी.एड (iv) एल एल.बी कार्यक्षेत्र-----रिटायर्ड शिक्षिका सम्प्रति-----लेखिका / कवयित्री प्रकाशन विवरण-- प्रकाशित एकल काव्य कृतियाँ-- (1) "मन दर्पण" (2) "नीरजा का आत्ममंथन" (3) "उमंग" (बाल काव्य संग्रह) प्रकाशित 23 साझा काव्य संग्रह---- क़दमों के निशान, सहोदरी सोपान 2, सहोदरी सोपान 3, भावों की हाला, कस्तूरी कंचन, दीपशिखा, शब्द कलश, भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ, भारत के प्रतिभाशाली हिंदी रचनाकार, काव्य अमृत, प्रेम काव्य सागर, शब्द गंगा, शब्द अनुराग, कचंगल में सीपियाँ, सत्यम प्रभात, शब्दों के रंग, पुष्पगंधा, शब्दों का प्याला, कुछ यूँ बोले अहसास, खनक आखर की, कश्ती में चाँद, काव्य गंगा, राष्ट्र भाषा हिन्दी सागर साहित्य पत्रिका। प्रकाशित 2 साझा कहानी संग्रह-- (1) अंतर्मन की खोज (2) सहोदरी कथा पत्र-पत्रिकायें--- देश विदेश के अनेकों पत्र- पत्रिकाओं व ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनायें। (शीघ्र प्रकाशित होने वाली संस्मरण पर आधारित एकल पुस्तक, 5 साझा काव्य संग्रह और 2 साझा कहानी संग्रह।) (3) सम्मान विवरण--- (1) साहित्य क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं /समूहों द्वारा कई बार सम्मानित---- काव्य मंजरी सम्मान, छंदमुक्त पाठशाला समूह द्वारा चार बार सम्मानित, छंदमुक्त अभिव्यक्ति मंच द्वारा पाँच बार सम्मानित, श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, साहित्यकार सम्मान ( दो बार प्राप्त हुआ ), भाषा सहोदरी हिंदी सम्मान (दो बार प्राप्त हुआ), साहित्य गौरव अलंकरण सम्मान, आगमन समूह द्वारा सम्मानित, माँ शारदे उत्कर्ष सम्मान , दीपशिखा सम्मान, शब्द कलश सम्मान, काव्य गौरव सम्मान (दो बार प्राप्त हुआ ), गायत्री साहित्य संस्थान द्वारा सम्मानित, नारी गौरव सम्मान, युग सुरभि सम्मान, शब्द शक्ति सम्मान, अमृत सम्मान, प्रतिभाशाली रचनाकार सम्मान, प्रेम सागर सम्मान, आगमन साहित्य सम्मान, श्रेष्ठ शब्द शिल्पी सम्मान, हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान, हिन्दी सागर सम्मान (संपादक सम्मान ), हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी द्वारा सम्मानित। (2) उपाधि---काव्य साहित्य सरताज उपाधि ( ग्वालियर साहित्य कला परिषद {मध्य प्रदेश}द्वारा प्राप्त ) (3) विद्यालय से भी दो बार शिक्षक दिवस पर "बेस्ट टीचर अवार्ड" प्राप्त हुआ है। (1997 और 2008 में

One thought on “संस्मरण : एक कसक

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा संस्मरण !

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