स्वामी विवेकानंद
राष्ट्रवाद प्रखर भाव से,पूरित जिनका तन मन था।ब्रह्मचर्य का तेज तपस्वी,धधक रहा नव यौवन था।जगा रहे थे जो भारत का,अलसाया
Read Moreराष्ट्रवाद प्रखर भाव से,पूरित जिनका तन मन था।ब्रह्मचर्य का तेज तपस्वी,धधक रहा नव यौवन था।जगा रहे थे जो भारत का,अलसाया
Read Moreखत्म होती धीरे-धीरे सुरमई शाम जब रात के आगोश में समाती है तो दूर कहीं चाँदनी की चमक बिखर जाती
Read Moreतप रही कढाई में बालू, भट्टी जलने का क्रम चालू। चारों दिशि फैली गमक बहुत, सोधीं -सोंधी सी महक बहुत।
Read Moreकोयल की कुहू-कुहू, मयूरों का नर्तनगायों का हुम्भारन बैलों की घण्टियों की घन-घन जब पुलक से प्रफुल्लित सी दिखती है अवनिसरसराता पवन जब देह को कँपाता
Read Moreमन में जब सपनें बुनते थे, साँझ सकारे जब मिलते थे। कहाँ गयीं वो चाँदनीं रातें, वो अनगिन मीठीं सी
Read Moreमुझमें चन्दन की महक भरी, अपनापन तुम में गाँवों का। मैं मधुर गीतिका तरल-सरल, विस्तार लिए तुम भावों का। तुम
Read Moreहुरियारों की टोली आई अपनी बस्ती में, धूम मचाती होली आई अपनी बस्ती में। लगा गुलाल सभी के कौन इन्हें
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