मेरी इक चाह
तुम सागर हो गहरे प्रेम का मेरे प्रियतम तुम प्रेम अथाह तुम में डूब कर मैं तर जाऊं है बस
Read Moreतुम सागर हो गहरे प्रेम का मेरे प्रियतम तुम प्रेम अथाह तुम में डूब कर मैं तर जाऊं है बस
Read Moreतू मर करके जी है ज़हर तो पी कभी कर्म कभी धर्म कहीं दया ना मर्म है ज्वाला जगी जो
Read Moreहाँ! मैं जोकर हूँ! औरों से हटकर हूँ रोते हैं सब जहाँ पर हँसता मैं डटकर हूँ बर्बाद हैं सब
Read Moreचांद के साथ सफर चलो कुछ और करें यादों में वक़्त बसर चलो कुछ और करें रात और दिन के
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