Author: रमेश कुमार सिंह 'रुद्र'

कवितापद्य साहित्य

ले रंग-गुलाबी उड़ा रहे हैं इधर……॥

ले रंग-गुलाबी उड़ा रहे हैं इधर……॥ ••••••••••••••••••••••••••••• मौज मस्ती का गूँजे तराना इधर। लोग बना रहे है अफसाना इधर। उमंग

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पद्य साहित्य

क्या पता ये क्यों इन्सान के रुप में पत्थर बन जन्म लिया है।

क्या पता ये क्यों इन्सान के रुप में पत्थर बन जन्म लिया है। पत्थर की भी मूर्तियां किसी की बेबसी

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पद्य साहित्य

तब-तक जिन्दगी यूँ ही इस दुनिया में भटकती रह जायेगी।

तब-तक जिन्दगी यूँ ही इस दुनिया में भटकती रह जायेगी। जब-तक अधिकारी अपने अधिकार को समझ नहीं पायेगे। किसी की

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