Author: *डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

गीत/नवगीत

गीत “मन के जरा विकार हरो”

देता है ऋतुराज निमन्त्रण,तन-मन का शृंगार करो।पतझड़ की मारी बगिया में,फिर से नवल निखार भरो।। नये पंख पक्षी पाते हैं,नवपल्लव

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गीत/नवगीत

होली गीत “छाया है उल्लास, चलो होली खेलेंगे”

मन में आशायें लेकर के,आया हैं मधुमास, चलो होली खेलेंगे।मूक-इशारों को लेकर के,आया है विश्वास, चलो होली खेलेंगे।।—मन-उपवन में सुन्दर-सुन्दर,

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गीत/नवगीत

गीत “कंचन का गलियारा है”

गीत “कंचन का गलियारा है”—वासन्ती परिधान पहनकर, मौसम आया प्यारा है।कोमल-कोमल फूलों ने भी, अपना रूप निखारा है।।—तितली सुन्दर पंख

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संस्मरण

संस्मरण – अच्छे साहित्यकार नहीं, अच्छे व्यक्ति बनिए

बाबा नागार्जुन की इतनी स्मृतियाँ मेरे मन और मस्तिष्क में भरी पड़ी हैं कि एक संस्मरण लिखता हूँ तो दूसरा

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संस्मरण

संस्मरण “अच्छे साहित्यकार नहीं अच्छे व्यक्ति बनिए”

संस्मरण “अच्छे साहित्यकार नहीं अच्छे व्यक्ति बनिए”—(चित्र में- (बालक) मेरा छोटा पुत्र विनीत, मेरे कन्धे पर हाथ रखे बाबा नागार्जुन

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गीत/नवगीत

“सत्य-अहिंसा की मैं अलख जगाऊँगा”

जो मेरे मन को भायेगा,उस पर मैं कलम चलाऊँगा।दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,आगे को बढ़ता जाऊँगा।।—मैं कभी वक्र होकर घूमूँ,हो जाऊँ

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