कविता

कविता “चोर पुराण”

कविता “चोर पुराण”

कुछ ने पूरी पंक्ति उड़ाई,
कुछ ने थीम चुराई मेरी।
मैं तो रोज नया लिखता हूँ
रोज बजाता हूँ रणभेरी।

चोरों के नहीं महल बनेंगे,
इधर-उधर ही वो डोलेंगे।
उनको माँ कैसे वर देगी,
उनके शब्द नहीं बोलेंगे।

उनका जीना भी क्या जीना,
सिसक-सिसककर जो है जिन्दा।
ऐसे पामर नीच-निशाचर,
होते नहीं कभी शरमिन्दा।

अक्षय-गागर मुझको देकर,
माता ने उपकार किया है।
चोर-उचक्कों से देवी ने,
शब्दकोश को छीन लिया है।

मैं उनका स्वागत करता हूँ,
जो ऐसे गीतों को रचते।
मुखड़ा मेरा जिनको भाया,
किन्तु सत्य कहने से बचते।

छन्द-काव्य को तरस रहे वो,
चूर हुए उनके सपने हैं।
कैसे कह दूँ उनको बैरी,
वो सब तो मेरे अपने हैं।

समझदार के लिए इशारा,
इस तुकबन्दी में करता हूँ।
मैं दिन-प्रतिदिन लिखता जाता,
केवल ईश्वर से डरता हूँ।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है