हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : कुत्ते ने आदमी पाला

एक आदमी गया और अपने घर में पालने के लिए किसी विदेशी नस्ल का एक कुत्ता ख़रीद लाया। (यहाँ कुत्ता का अर्थ कुत्ता-कुतिया दोनों और आदमी का अर्थ पुरुष और स्त्री दोनों समझना चाहिए, यदि विशेष रूप से कुछ अलग न लिखा गया हो।)
आदमी को यह भ्रम है कि वह कुत्ता पाल रहा है, जबकि वास्तव में कुत्ते ने स्वयं को बेचकर अपने लिए मालिक के रूप में सेवक ख़रीद लिया है। अब उसके तथाकथित मालिक (वास्तव में नौकर) की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अपने से ज़्यादा कुत्ते की सेवा करें। उसको समय पर खिलाना, पिलाना, घुमाना-चराना, उसका मल-मूत्र साफ़ करना और नख़रे उठाना अब उसकी ज़िम्मेदारी हो गयी है। इसके बदले में कुत्ते को कोई काम नहीं करना पड़ता, बस पूँछ हिलानी पड़ती है और कभी-कभी दूसरों पर भौंकना पड़ता है।
कुत्ते की सेवा करते-करते ऐसे आदमियों में भी कुत्तों के गुण आ जाते हैं। वे अपने कुत्ते और स्वयं को दूसरे आदमियों से ऊँचा समझने लगते हैं। वे शेष आदमियों को बहुत घटिया मानते हैं, क्योंकि उनकी औक़ात कुत्ता पालने की नहीं है। अपने कुत्ते की आन-बान-शान बनाये रखने के लिए वे किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। यदि कोई उनके कुत्ते को छू भी दे, तो वे आपे से बाहर होकर कुत्तागिरी पर उतर आते हैं। उनका कुत्ता भौंके या न भौंके, पर कुत्ते की तरफ़ से वे स्वयं भौंकने लगते हैं।
अपने कुत्ताप्रेम में ऐसे लोग उनकी स्वाभाविक शारीरिक आवश्यकताओं की भी उपेक्षा कर देते हैं। मेरे एक मित्र ने एक कुतिया पाल रखी है, जिसको वे अपनी बेटी बताते हैं। एक दिन मैंने उनसे पूछा कि क्या वे अपनी कुतिया को कुत्तों से मिलने देते हैं? इस सवाल पर वे मुझसे नाराज़ हो गए और कहने लगे- “मैं पिल्लों का बोझ नहीं उठा सकता, इसलिए उसे घर से बाहर नहीं जाने देता।” मुझे उनके इस कुत्तापन पर बहुत खीझ हुई।
कुत्तापालक अपने कुत्ते का कोई विचित्र सा अंग्रेज़ी लगने वाला नाम भी रख देते हैं, जैसे- टॉमी, पॉमी, जॉनी, मॉनी, टीटू, मीटू, पप्पू, चप्पू, बैजू, फैजू, फूली, जूली, पप्पी, झप्पी, बब्बू, डब्बू आदि। (यदि आपके कुत्ते का नाम इस सूची में न हो, तो कृपया जोड़ लें।) उनको कुत्ता जाति से इतनी घृणा हो जाती है कि वे चाहते हैं कि सब उसे उसके नाम से ही पुकारें, कोई उसे “कुत्ता” न कहे। हाँ “डॉगी” कहने में उनको कोई आपत्ति नहीं होती।
जैसे किसान लोग गाय-भैंस चराया करते हैं, उसी तरह कुत्तापालक सुबह-सुबह अपने कुत्ते को चराते नज़र आते हैं। उनका कुत्ता इधर-उधर गलियों में, सड़कों पर, फुटपाथों पर मल विसर्जन करता और कारों के टायरों पर मूतता फिरता है और वे बड़े गर्व से उसे देखते रहते हैं। यदि कोई इस पर आपत्ति करता है, तो वे सीधे कुत्तागिरी पर उतर आते हैं।
यों तो कुत्ता-गाथा बहुत लम्बी है, पर अभी इतनी ही।
*— बीजू ब्रजवासी*