Author: *डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल “शहर-ए-दिल्ली को बदलने दीजिए”

आग को सीने में जलने दीजिएजमुन से गंगा निकलने दीजिए—अपनी अस्मत को बचाने के लिएफूल को काँटों में पलने दीजिए—अज़नबी

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मुक्तक/दोहा

चौबीस दोहे “पथ होते अवरुद्ध”

तानाशाही से लुटी, बड़ी-बड़ी जागीर।जनमत के आगे नहीं, टिकती है शमशीर।१।—सुलभ सभी कुछ है यहाँ, दुर्लभ बिन तदवीर।कामचोर ही खोजते,

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गीत/नवगीत

“आया बसन्त-आया बसन्त”

सबके मन को भाया बसन्त।आया बसन्त-आया बसन्त।। उतरी हरियाली उपवन में,आ गईं बहारें मधुवन में,गुलशन में कलियाँ चहक उठीं,पुष्पित बगिया

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मुक्तक/दोहा

छब्बीस दोहे “मुखरित है शृंगार”

प्रीत-रीत का जब कभी, होता है अहसास।मन की बंजर धरा पर, तब उग आती घास।१।—कुंकुम बिन्दी-मेंहदी, काले-काले बाल।कनक-छरी सी कामिनी,

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मुक्तक/दोहा

दोहे “शेर-दोहरे छन्द”

माता के वरदान से, होता व्यक्ति महान।कविता होती साधना, इतना लेना जान।।—कविता का लघु रूप हैं, शेर-दोहरे छन्द।सन्त-सूफियों ने किये,

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गीत/नवगीत

“गुलशन का खिलता गलियारा”

रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा, अच्छा लगता है।जीवन में छाया उजियारा, अच्छा लगता है।।—उपवन में चहकीं कलियाँ, जब महक लुटातीं हैं,मधुबन में

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गीत/नवगीत

“दिवस सुहाने आयेंगे”

थोड़े दिन में वन-उपवन के,वृक्ष सभी बौरायेंगे।अपनी बगिया के बिरुओं मेंफूल बसन्ती आयेंगे।।—सेमल के तो महावृक्ष ने,नया “रूप” अब दिखलाया।पत्ते

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