गीत/नवगीत

“दिवस सुहाने आयेंगे”

थोड़े दिन में वन-उपवन के,
वृक्ष सभी बौरायेंगे।
अपनी बगिया के बिरुओं में
फूल बसन्ती आयेंगे।।

सेमल के तो महावृक्ष ने,
नया “रूप” अब दिखलाया।
पत्ते सारे सिमट गये हैं,
पतझड़ में तन गदराया।
सेमलडोढे खिल जायेंगे,
सबका मन हरसायेंगे।
अपनी बगिया के बिरुओं में
फूल बसन्ती आयेंगे।।

टेसू के पेड़ों पर भी अब,
लाल अँगारे दहकेंगे।
वन की छटा अनोखी होगी,
कुसुम डाल पर चहकेंगे।
अब चम्पा-जूही गेन्दा भी,
घर-आँगन महकायेंगे।
अपनी बगिया के बिरुओं में
फूल बसन्ती आयेंगे।।

पीताम्बर परिधान पहनकर
पीली सरसों फूलेंगी।
गेंहूँ के कोमल पौधों पर,
हरी बालियाँ झूलेंगी।।
खुशियों गठरी को लेकर,
दिवस सुहाने आयेंगे।
अपनी बगिया के बिरुओं में
फूल बसन्ती आयेंगे।।

जन-मानस को जन-जीवन में,
वासन्ती संकेत मिल रहा।
बिस्तर बाँध रही है सरदी,
नभ में रवि का रूप खिल रहा।
गीत खुशी के कागा-कोकिल,
कानन में अब गायेंगे।
अपनी बगिया के बिरुओं में
फूल बसन्ती आयेंगे।।

प्रेमदिवस दस्तक आने वाला है,
मस्त नज़ारे होंगे अब।
यौवन का उन्माद बढ़ेगा,
प्रणय-दिवस आयेंगे जब।
वादे और इरादे नेहिल,
रस की धार बहायेंगे।
अपनी बगिया के बिरुओं में
फूल बसन्ती आयेंगे।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है