Author: *डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

गीत/नवगीत

गीत “मस्त पवन ने रूप दिखाया”

चहक उठे हैं खेत-बगीचे, धरती ने सिंगार सजाया।बिछे हुए हैं हरे गलीचे, सरसों ने पीताम्बर पाया।।—निर्मल नदी-सरोवर लगते, कोयल-कागा पंख

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मुक्तक/दोहा

“दाल-भात अच्छे लगें, कंकड़ देते कष्ट”

दाल-भात अच्छे लगें, कंकड़ देते कष्ट।भोजन के आनन्द को, कर देते है नष्ट।।—ध्यान लगाकर बीनिये, कंकड़ और कबाड़।प्राणवायु मिल जायेगी,

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मुक्तक/दोहा

“चौदह दोहे-उत्तरायणी पर्व”

आया है उल्लास का, उत्तरायणी पर्व।झूम रहे आनन्द में, सुर-मानव-गन्धर्व।१।—जल में डुबकी लगाकर, पावन करो शरीर।नदियों में बहता यहाँ, पावन

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गीत/नवगीत

“छाई है बसन्त की लाली”

पाई है कुन्दन कुसुमों नेकुमुद-कमलिनी जैसी काया।आकर सबसे पहलेसेमल ने ऋतुराज सजाया।। महावृक्ष है सेमल का यह,खिली हुई है डाली-डाली।हरे-हरे

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गीत/नवगीत

“मौसम ने मधुमास सँवारा”

जल में-थल में, नीलगगन में,छाया है देखो उजियारा।सबकी आँखों में सजता है,रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा।।—कलियाँ चहक रही उपवन में,गलियाँ महक रही

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गीत/नवगीत

गीत “कब दिवस सुहाने आयेंगे”

लो साल पुराना बीत गया।अब रचो सुखनवर गीत नया।।—फिरकों में है इन्सान बँटा,कुछ अकस्मात् अटपटा घटा।अब गली-गाँव का भिक्षुक भी,अपनी

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गीत/नवगीतमुक्तक/दोहा

दोहागीत “खादी का परिधान”

आज विदेशी जाल में, जकड़ा हिन्दुस्तान।दूर गरीबों से हुआ, खादी का परिधान।।—चरखे-खादी ने दिया, आजादी का मन्त्र।बन्धक अर्वाचीन में, अपना

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