चेतन को गर्त में दबाते हुए
जान कितनी सस्ती हो गयी ना लोगो की या किसी धर्म या दल का होना ही अपराध हो गया निरीह
Read Moreजान कितनी सस्ती हो गयी ना लोगो की या किसी धर्म या दल का होना ही अपराध हो गया निरीह
Read Moreउमड़ते घुमड़ते रहे बादल अंतस में नीर बन बह ना सके नैनों से फिर मेरी कविता चूक गई उस तक
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