कविता सविता दास सवि 01/01/2020 शब्द गढ़ती रहूँगी उमड़ते घुमड़ते रहे बादल अंतस में नीर बन बह ना सके नैनों से फिर मेरी कविता चूक गई उस तक Read More
कविता सविता दास सवि 01/01/2020 सार्थकता मन करता है , हरी दूब के फर्श पर लेटे तारों को साक्षी कर हाथ तुम्हारा थाम कुछ बाते दिल Read More