संग-साथ की इच्छा सबकी
पुष्प की चाह, सभी को होती, कुछ ही पल को वह खिलता है। संग-साथ की इच्छा सबकी, किन्तु साथ कुछ
Read Moreपुष्प की चाह, सभी को होती, कुछ ही पल को वह खिलता है। संग-साथ की इच्छा सबकी, किन्तु साथ कुछ
Read Moreप्रकृति के ही घटक हैं हम भी, प्रकृति न हमसे न्यारी है। महासागर, पर्वतमालाएँ, प्रकृति ही, नर और नारी है।।
Read Moreअकेलेपन से जूझ रहे सब, साधक एकान्त का रस लेता है। समय का साधक, कर्म करे बस, नहीं माँगता बस
Read Moreसमस्याओं से, तुम कभी न भागो, सोचो, समझो और गले लगाओ। किसी से, किसी की, करो न शिकायत, समाधान बनकर
Read Moreजब भी आपको साथ चाहिए, अपने साथी खुद बन जाओ। अपने आपको मित्र बनाओ, साथी न खोजो, साथ निभाओ।। खुद
Read Moreनारी है देवी, नर परमेश्वर। सबका अपना-अपना ईश्वर। पैदल चलकर भूख से मरते, कहीं, कोई है क्या जगदीश्वर? सच क्या
Read Moreनर-नारी संबन्ध निराला। पत्नी, बेटी हो या खाला। इक-दूजे को देखे बिन, गले से उतरे नहीं निवाला। नारी को कहते
Read Moreनारी उर में, दीप सजाती, नर बिखराता ज्योती है। प्रकृति-पुरुष के सम्मिलन से, सृष्टि की रचना होती है।। भिन्न प्रकृति
Read Moreबहुत है झेला, बहुत है भोगा, शेष रही कोई, चाह नहीं है। कुछ भी कहो, कुछ भी करो, किसी की
Read Moreहर प्राणी, चैन की नींद सोता है। घर तो आखिर, घर होता है।। कण-कण में, प्रेम है रमता। दादी दुलार
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