नदी
नहीं है ख्वाहिश कि दरिया से जा मिलूं अभी कुछ और लोगों की प्यास बुझे कुछ और बहुँ मैं अभी
Read Moreमिले फुर्सत तो आना घर पे रखा है सारे वह लम्हे संजो के जी लेंगे पर फिर वही पुराना दौर
Read Moreजब भी जाता हूं ऑफिस याद आती रहती अक्सर एक चीज कब बजे दोपहर के डेढ़ निकालूं अपनी मैं टिफिन
Read Moreथी एक सांवली, भोली भाली बावली, घूमती रहती दरबदर, ना सगा ना कोई घर, आंखों में थी बड़ी कशिश, उम्र
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