पाषाण – उत्सव (व्यंग्य)
देश पाषाण युग की ओर लौट रहा है। पाषाण उत्सव मना रहा है। पत्थर में भगवान तलाशे जा रहे हैं
Read Moreदेश पाषाण युग की ओर लौट रहा है। पाषाण उत्सव मना रहा है। पत्थर में भगवान तलाशे जा रहे हैं
Read Moreखून सने हाथों को, जीवन देना होगा ठीक नहीं भारत माँ के गद्दारों की, साँसें चलना ठीक नहीं जिसकी बंदूकों
Read Moreएक ऐसी वस्तु का नाम बताइए जो खाने के भी काम आती है और पहनने के भी? चकरा गए? मैं
Read Moreकठिन डगर है, कोई न साथी, पर तुम ना घबराना अंधियारा भी हो जाए तो, लक्ष्य को भूल ना जाना।
Read Moreजिसे सुलाया बाँहों में और पलकों की छाँव में मैं नहीं सोच सकता हूँ मेरी बिटिया तुझे बिलखता, नहीं देख
Read Moreआँसुओं को मैं ईंधन बनाती रही तेरी यादों के दीपक जलाती रही। होंठ हर पल तेरा नाम गाते रहे मुस्कुराते
Read Moreआज विरहिणी तुझे पुकारे, कहाँ गया मेरा यार रूठ गयी माथे की बिंदिया, कहाँ खो गया प्यार? तुम संग जो
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