दोहा-वसुंधरा
शेषनाग सिर है धरी, मां वसुंधा महान। जन गण की है तारणी, करती जन कल्याण। सतयुग त्रेता द्वापर, कलयुग तक
Read Moreशेषनाग सिर है धरी, मां वसुंधा महान। जन गण की है तारणी, करती जन कल्याण। सतयुग त्रेता द्वापर, कलयुग तक
Read Moreमेरी आँखो से रिसता तेरी यादों का हर पल बूँद बन पिघल जाता मेरी कोमल कपोलों पर आ कर बिछ
Read Moreनशे का सौदागर, है युग का आदमी। छुपा हुआ अजगर,है युग का आदमी। काम, क्रोध, लोभ, मोह, हंकार पालता, हुआ
Read Moreचलो एक बार फिर जिंदगी वक्त आज़माते हैं। संकल्प पर टिकी हमारी आशाएं बता देते हैं। हिम्मत से चलना सीखा
Read Moreमिलते हैं नसीब में सब को,मस्त भरे खुशीयों के रंग। होठों पर मुस्कान बिखेरे,होते पुलकित भीतर अंग। तज कर बैर
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