पश्चाताप की अग्नि
स्तब्ध रह गया धरा गगन मौन हो गये जन के बोल, निष्ठुर ईश्वर तूने खेला क्यों ऐसा अनचाहा खेल। माना
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Read Moreअरे बेशर्म मानवों! कितने बेहया हो तुम मगर तुम्हें क्या फर्क पड़ता है तुम आखिर सुनते ही किसकी हो। तुम
Read Moreराम ने मर्यादा की भी मर्यादा का कदम कदम पर सम्मान किया, क्षत्रिय धर्म निभाया, पुत्र, भाई, सखा, राजा ही
Read Moreनौ दिसंबर उन्नीस सौ उनतीस लखनऊ में जन्में थे रघुवीर सहाय, उन्नीस सौ इक्यावन में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में
Read Moreमैं आपकी तरह बेवकूफ नहीं हूँ जो किस्मत के भरोसे बैठा रहूं किस्मत हमारी है हमारे काम आयेगी उसकी कार्यशैली
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