कविता

श्रमदान

दान का स्वरूप बहुआयामी है
ऐसा ही एक स्वरूप श्रमदान है,
मगर बड़े से बड़ा दानी भी
ये सौभाग्य नहीं पाता,
यूँ भी कह सकते हैं,
श्रमदान की लिस्ट में
आना ही नहीं चाहता,
आना भी चाहता है तो
सिर्फ़ नाम लिखाना चाहता है,
श्रमदान को अधिकांश
गरीबों, कमजोरों के हक में मानता है।
बस यही भूल जाता है कि
श्रमदान का महत्व बहुत बड़ा है,
कहीं हजारों तो कहीं लाखों
तो कहीं करोड़ों का हित
श्रमदान से जाने अंजाने जुड़ा है।
वास्तव में समाज और राष्ट्र को
श्रमदान की जरुरत है,
जब समाज और राष्ट्र हम सबका है
तब हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है।
हर जरूरत के लिए
सरकार के सामने याचक बनने से
बहुत अच्छा है कुछ हम भी करें,
निरीह बनने से अच्छा है,
समाज राष्ट्र की भलाई के लिए
कम या ज्यादा जितनी भी सामर्थ्य हो
उतना श्रमदान अवश्य करें।
सरकार पर बोझ न बनकर
सरकार का कुछ सहयोग भी करें
श्रमदान पर आप भी आज
अब तो तनिक विचार करें।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921