समय रुकता नहीं
बचपन में पिता,तरुणावस्था में मांँ को खोने के बाद शीला ने खुद को संभालने का हर जतन किया। मगर
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Read Moreवक्त कहो या समय कोई फर्क नहीं पड़ता, बस! वक्त या समय चलता रहता है निरंतर, निर्बाध अविराम। वक्त बड़ा
Read Moreहम तो कुछ भी कर सकते हैं अपने अधिकारों के लिए, नीति अनीति, न्याय अन्याय सही ग़लत, दंगा फसाद भी।
Read Moreलगभग दो वर्ष पुरानी बात है जब मैं पक्षाघात से उबरने के दौरान पुनः लेखन में सक्रिय हुआ था। मेरे
Read Moreमैं भी पढ़ूंगी लिखूँगी, नाम करूँगी सपनों की ऊंची उड़ान भरुँगी, माता पिता का नाम करुँगी अपनी भी नई पहचान
Read Moreविकास, विकास और विकास की चर्चाओं को विराम दीजिए, पहले अपना विकास फिर सबके विकास का विचार कीजिए। सबके विकास
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