कविता

ये वक्त भी चला जायेगा

वक्त कहो या समय
कोई फर्क नहीं पड़ता,
बस! वक्त या समय चलता रहता है
निरंतर, निर्बाध अविराम।
वक्त बड़ा भोला है
अपने काम के प्रति संवेदनशील है
जूनून से लगा ही रहता
अपने कर्तव्यों के प्रति।
न ईर्ष्या न द्वैष,न निंदा न नफरत
न कोई दोहरा मापदंड
न हमसे लगाव, न आपसे दुराव
न ऊंच नीच का भेद
क्या अपने, क्या पराए।
क्योंकि उसके तो सभी अपने, सभी पराए हैं
पर भला उसका साथ देने कितने आये हैं
ये तो हमारी आपकी मर्जी है
सच कहें तो सिर्फ खुदगर्जी है।
वो तो किसी का इंतजार नहीं करता
किसी को आमंत्रण भी नहीं देता
अपने सिद्धांतों से तनिक पीछे नहीं हटता।
वो वक्त भी तो चला गया
ये वक्त भी चला ही जायेगा
यही नहीं आने वाला वक्त भी
आयेगा और आकर चला ही जायेगा।
क्योंकि यही उसकी नियत है
आना और चले जाना, चलते जाना
ठहराव उसकी किस्मत में नहीं।
फिर ये उम्मीद क्यों
कि ये वक्त ठहर जायेगा?
आप करते हैं तो करते रहिए
आपको भला रोक कौन पायेगा
पर ये वक्त भी चला ही जायेगा,
बस! इतना भर जरुर होगा
किसी को खुशियां,किसी को ग़म दे
अपनी निशानी छोड़ जायेगा
मगर ये वक्त भी जरुर चला जायेगा।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921