अन्जाना भय
रोज मरती है ख्वाहिशें अल्हड़ नादान बचपन की एक अजीब सा डर पीछा करती कुछ निगाहें अनहोनी का भय सहम
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Read Moreउम्र की सच्चाई इतनी लम्बी उम्र मिली है , पर जीने का वक़्त नहीं, रिश्तों की भरमार है पर रिश्तों
Read Moreयाद है , प्रेम के किन्हीं क्षणों में तुमने कहा था चूंकि , खूँ का रंग लाल है, ख़तरे का
Read Moreकाशी हिंदू विश्वविद्यालय(BHU) में इन दिनों जो हुआ, बेहद निन्दनीय व शर्मनाक…. क्या यही अब नीति होगी देश और इस
Read Moreपता नहीं क्यों तुमको सेना पर पत्थर मरने वाले भटके नौजवान लगते हैं. पता नहीं क्यों तुमको भारत तेरे टुकड़े
Read Moreपरछाइयों तक को अलग कर देती है रौशनी जब-जब नज़र आती है भिन्न दिखता है हर कोई अलग रूप दशा
Read Moreमेरी ज़रा सी बात पर वो खफा हो गया न जाने क्यों इंसान से “खुदा ” हो गया, न
Read Moreछंद दुर्मिल सवैया (वर्णिक ), शिल्प – आठ सगण, सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा , 112 112
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