कविता

इंतजार….

कितना इंतजार है
मेरे प्यार में…..

ये तुम क्या जानो
पल-पल जी रही हूँ
तुम्हारी यादों में…..

पर अब अच्छा नहीं लगता
यूँ तुम्हारे ख्वाबों में जीना
हकीकत हो तुम
मेरी जिंदगी के….

लौट आओ न
बीच की
गलतफहमी मिटाकर
बस याद रखो मेरे
बेइंतहा मुहब्बत को….

क्या इतना काफी नहीं
तुम्हारे प्यार की कसौटी पर
खड़ी उतरने के लिए…..

सुनो समझो न !
सताती है तन्हाईयाँ
रुलाता है वक़्त मुझे
तुम्हारे नाम से…..

आखिर क्यों !
चले गए तुम मुझसे
मुँह फेरकर
दर्द देती है
ये बेरुखी तुम्हारी….

प्यार वक़्त मागता है
जानती हूँ मैं
लेकिन अब वक़्त हो चला
एक हो जाएं हम तुम

इसलिए लिख रही हूँ
तुम्हारे इंतजार में
तुम्हारी…..

*बबली सिन्हा

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