“कुंडलिया”
बैठी क्यों उदास सखी, घिरी खुद के बिस्तर। सौंप हाथ को तूलिका, ताक रही है ब-ख्तर। ताक रही हैं
Read Moreबैठी क्यों उदास सखी, घिरी खुद के बिस्तर। सौंप हाथ को तूलिका, ताक रही है ब-ख्तर। ताक रही हैं
Read Moreगरीब की आह लिखूँगी, अमीर की चाह लिखूँगी, आम जनता के लिये राजनेता हैं बेपरवाह लिखूँगी। गरीब का दर्द लिखूँगी,
Read Moreकुछ औरतो के चोटी कटने की खबर सुन—— मेरी लुगाई भी सदमे मे है। वे सोये मे भी उठ जा
Read Moreमेरी कविता चीख है हकीकत की किसी का गुणगान नहीं अबोल पीड़ा है माटी की किसी पार्टी के दरवाजे की
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