षड्यंत्र
षड्यंत्र (छन्द मुक्त कविता) •••••• षड्यंत्र बिन नहीं काम चलता चाहे हो अपना भाई कोई भाई ही भाई को डसता
Read Moreछंद दुर्मिल सवैया (वर्णिक ), शिल्प – आठ सगण, सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा , 112 112
Read Moreअब न वो सुबह होती है न वो वैसी रात होता तो सब है मगर अब नहीं रही वो बात
Read Moreमुक्त काव्य विश्वविद्यालय के परिसर की हँसती खिलखिलाती भीड़ की और मेरा वहाँ से निकलना हुआ मेरे साथ थी उत्कंठा
Read Moreसिर्फ तुम्हारे लिए ——————— 1- धडकता है दिल तुम्हारा मेरे सीने में कहो कैसे समझाऊं इस नादान को बस तुम्हारा
Read Moreसिर्फ तुम्हारे लिए ——————— 1- धडकता है दिल तुम्हारा मेरे सीने में कहो कैसे समझाऊं इस नादान को बस तुम्हारा
Read Moreदुर्मिल सवैया (वर्णिक ), शिल्प – आठ सगण, सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा , 112 112 112
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