विरहण हिया अंगार
पानी- पानी हो गयी, विरहण हिया अंगार । बसुरी मोहन की बजी. कविता का शृंगार । चार चाँदनी चाँद लखि चतुर चकोर
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Read Moreजब मैं छोटी थी मुझे परियों की सी फ्रॉक पहना और बालों में रिबन लगा आंखों में काजल लगा प्यार
Read Moreनहीं चाह मुझे रत्न जड़ित आभूषणों की, नहीं कामना मुझे सलमे सितारों से सजी चंदेरी चुनर की, नहीं ईप्सा मुझे
Read Moreजब मैं छोटी थी फूलों की खुशबू मुझे इत्र से ज्यादा भाँती थी उन दिनों पापा के साथ पुलिस थाना
Read Moreमेरे हिस्से में रात आई रात का रंग काला है इसमें कोई दूजा रंग नहीं मिला इसलिए सदा सच्चा है
Read Moreकैसे कहूँ कि प्रेम क्या है मेरे लिए तो माँ की ममता प्रेम है पिता का धैर्य प्रेम है पति
Read Moreमैं स्वर्ग से डॉक्टर नारंग बोल रहा हूँ एक यक्ष प्रश्न लिए मैं डोल रहां हूँ मुझको भी तो भीड़
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