प्रसून
हे प्रसून! तुम आभा के आकर हो मन सुगंध, तन शोभा-श्री का घर हो कहीं श्वेत, कहीं नील रंग तुम
Read Moreतुम्हें सोचती हूँ तो गुम हो जाती हूं , तेरी परछाई सी बन जाती हूं गजलें लिखती हूँ गीत गुनगुनाती
Read Moreअकेली जिन्दग़ी भी कोई जिन्दग़ी है ! अपने साये से भी घुटन होती है अपनी लाश को खुद के ही
Read Moreहै नदी न अपना जल पीती, केवल औरों के हित जीती, है प्यास बुझाती सब जग की, फिर भी न
Read Moreशून्य में दुनिया समायी, शून्य से संसार है। शून्य ही विज्ञान का अभिप्राण है आधार है।। शून्य से ही नाद
Read Moreपांच सो हजार की नोटों पे है पाबंदी, बैंक ने की काली बाजारी ओ से संधि! हमे पता चला है
Read Moreज्ञान का एक असीम भंडार मस्तिष्क बस एक सोच ही होगी कुछ क्लिष्ट पग पग हृदय पथ दिखाता रहा हाथ
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