मधुगीति – प्राण परिहरि त्राण वर कर !
प्राण परिहरि त्राण वर कर, आत्म हो स्वच्छन्द जाती; लिप्ति की भित्ति विहा कर, मुक्ति का आनन्द लेती ! तख़्त
Read Moreप्राण परिहरि त्राण वर कर, आत्म हो स्वच्छन्द जाती; लिप्ति की भित्ति विहा कर, मुक्ति का आनन्द लेती ! तख़्त
Read Moreत्याग कर तृण वत स्वदेही, आत्म हो जाती विदेही; यन्त्र वत उड़ कर सनेही, दूर से तकती विमोही ! लौट
Read Moreमुझे ये निकाह कबूल है मुझे तुम्हारा साथ कबूल है मुझे तुम्हारी पाबंदियाँ कबूल है मुझे जमाने की रूसवाइयां
Read Moreजीवन के एक-एक पल को व्यर्थ कभी न जाने दो है अनमोल यह जीवन इसे कुछ कर दिखाने दो गूढ
Read Moreअक्सर और आदतन, निद्रा के आगोश में जाने से पहले, ले बैठती हूँ… दिनभर के लेखे – जोखे की किताब
Read More