दो कविताएँ
(1) बहुत जरुरी हैं डैडी समाज में रहने के लिए झूठी सहानुभूतियों से बचने के लिए एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व
Read More(1) बहुत जरुरी हैं डैडी समाज में रहने के लिए झूठी सहानुभूतियों से बचने के लिए एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व
Read Moreकान खोल कर सुन लो आतंक आ गया है अब तेरा अंत यदि भारती मॉ पर नजर डाला तो हो
Read Moreवैज्ञानिक रस में डूब कर, आधुनिक उन्नति खूब कर, वह प्रकृति का शासक बन बैठा । भौतिक सुखों की होड़
Read Moreजब से मिली हूँ तुमसे भूलकर सभी गमो को खुशियों को अपनायी हूँ साथ तेरा पाकर लगे जैसा रब का
Read Moreकहाँ छिपी है काली बदरिया… आसमां ! काले बदरा को कहाँ छिपाकर रखा है । न उमड़ता है न घुमड़ता
Read Moreआज का शीर्षक- पाप/दुष्कर्म/ अनीति समानार्थी शब्द पाप पाप होता सदा, कोई भी हो बाप डंश जाता है आबरू, दूजे
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