कविता

पहली बार

पहली बार
जब आयी थी मै
तुम्हारे शहर में
सब अंजाना अंजाना सा था
कोई नही था अपना
पर जब तुम मिलें
एक बार में ही
ऐसा लगा
जैसे मिल गया
कोई हमसफर
मिटती गयी दूरियॉ
बढती गयी नजदीकियॉ
मिलने लगे सुबह शाम
करने लगे दिलो की बात
डाल हाथो में हाथ
काटने लगे सुकून के पल
नही फिकर दूनियॉ की
नही डर  किसी से
बस एक चाहत थी
साथ रहे हमदोनो
खुशियो से भरा रहे दामन
गम का नामो निशान न हो
बस हमदोनो साथ हो
हमेशा हमेशा के लिये पास हो|
     निवेदिता चतुर्व

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४