कविता : रुक जाओ ना छोड़ के जाओ
रुक जाओ ना छोड़ के जाओ अपने बच्चों को अपनी पत्नि को अकेले सात फेरे लिये हैं तुमने अग्नि के
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Read Moreकैराना और कांधला दोनों एक समान खतरे में दिखती जहां एक वर्ग की जान एक वर्ग की जान पलायन करने
Read Moreभारत सदैव ही, एक विकसित देश है, जिसकी की रज-रज मे मानवता का समावेश है | विश्व बंधुत्व जहाँ धर्म
Read Moreपथरीली-सी वो राह जिस पर चलकर घिस लिए थे उसने जानबूझकर अपने तलवे हर उठता क़दम करता है पथरीलापन कम
Read Moreऐन केन प्रकेन करके जैसे तैसे विकास की ट्रेन को रोक दो हमारा हाथ गंदा हो गया है एक नया
Read Moreबचपन की बात बस, बचपने से सीखिए, युवावस्था, आये बुढापा, बचपन ना जाने दीजिये। बचपन की मासूमियत, मुख पर बरकरार
Read Moreतपती धूप में वो ठेला धकाता था नहाने को पानी नहीं था रोज पसीने से नहाता था घर को चलाने
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