कविता : रूप विधाता का
यही है रूप विधाता का जो माता कहलाती है. पिता के पुण्य को लेकर स्वरक्त से सिंचित करती है सहकर
Read Moreयही है रूप विधाता का जो माता कहलाती है. पिता के पुण्य को लेकर स्वरक्त से सिंचित करती है सहकर
Read Moreहर सुबहा की लालिमा, लाए खुशी अपार हनुमान सी सोच लिए, बालक है तैयार बालक है तैयार, पकड़ लूँ सूरज
Read Moreवो रात दूसरी थी ये दिन दूसरा है ••••••••••••••••••••••••••••• वो रात दूसरी थी ये दिन दूसरा है वो बात दूसरी
Read Moreग़लती सारी नहीं दहेज़ मांगने वालों की कुछ तो ग़लती रही होगी उनकी भी जो लाड़-लाड़ में, दिखावे में लाद
Read Moreक्यों न जाती सबकी राह तुम तक क्यों न आती तेरी आह हम तक सीचं सीचं कर धरती , जीवन
Read Moreमजदूरों के लिए भी क्या कुछ सोचेंगी सरकार शायद नहीं कभी नहीं बेचारी लाचार है क्योंकि इंसानियत का झरना सूख
Read Moreबेजुबान होते है पत्थर तराशा गया है उन्हें इस खूबी से मासूमियत का इजहार करते बच्चे जब भूखे हो दाने
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