कविता

कविता : रूप विधाता का

यही है रूप विधाता का
जो माता कहलाती है.

पिता के पुण्य को लेकर
स्वरक्त से सिंचित करती है
सहकर तमाम दर्दों को
दुख न किंचित करती है
झूलाकर बाँहों अपने
स्तन अपना पिलाती है
यही है रूप विधाता का
जो माता कहलाती है.

उसको अपने से पहले
हैं चिंता कि क्या बनूँगा मैं
उसने सँवारा है ऐसे कि
बड़ा होकर बड़ा बनूँगा मैं
मेरी किस्मत बदलने को
नियती से लड़ जाती है
यही है रूप विधाता का
जो माता कहलाती है.

मैं कहूँ क्या क्या कि
कैसे चमत्कार हैं उसके
मुझे भनक होने से पहले
मेरी हर खबर पास है उसके
इधर मैं भींगता हूँ बारिश में
सर्दी उसको लग जाती है
यही है रूप विधाता का
जो माता कहलाती है.

समर्पित प्राण हैं मेरें
चरणों में सर झुकाता हूँ
बड़ा हीं फख्र है मुझको
उस का मैं पुत्र कहलाता हूँ
बनाया भू अंबर को जिसने
जगत जननी कहलाती है…..
यही है रूप विधाता का
जो माता कहलाती है.

—- विशाल नारायण
वास्को, गोवा

विशाल नारायण

नाम:- विशाल नारायण , पिता:- बीरेन्द्र कुमार सिंह, ग्राम:- सखुआँ, जिला:- रोहतास, बिहार सम्प्रती गोवा में पदस्थापित. विशाल नारायण वास्को गोवा. 9561266303

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