धरती आकाश का मिलन,
क्षितिज की और संध्या काल में निहारती नारी के मन में उठते भावो का ब्यान करती हुई यह कविता —–
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Read Moreबजट से पहले– आम बजट हो खास बजट हो राहत का अहसास बजट हो खाना मिले पेट भऱ सबको छत
Read Moreस्त्री हिचकियाँ की सखी साथ फेरो का सकल्प दुःख सुख की साथी एकाकीपन खटकता परछाई नापता सूरज पहचान वाली आवाजों
Read Moreब्यथा अपने मन की बताऊ तो किसे बताती भी हू तो बताकर क्या करू आज के इस दौर मे उलझन
Read Moreजब से नन्हा सा शिशु घर पर मेरे आया गुलशन में फूलों सा आँगन मेरा महकाया कोना -कोना महका जब
Read Moreधुंध की चादर पसारे धरा के रूप को सभाले धूप हो गई है गुलाबी मौसम अंगराई मारे बादल श्वेत परिधान
Read Moreदफ्तर के ऑफिसर ने दिवाली के दिन एक कर्मचारी की रिश्वत को लौटा दिया ये देख ऑफिसर की बीवी का
Read Moreसबकुछ वही है वही सुर…वही साज़ शाखों पे गिरती हुई शबनम की आवाज़ हाँ सबकुछ वही है वही रंग…वही रूप
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