ग़ज़ल/गीतिका
खुदा भी येे कैसी इन्तिहा चाहता है मरे को कितना मारना चाहता है मुकद्दर में है जिंदगी भर का अंधेरा
Read Moreखुदा भी येे कैसी इन्तिहा चाहता है मरे को कितना मारना चाहता है मुकद्दर में है जिंदगी भर का अंधेरा
Read Moreलोग कहते हैं नदियों में सलाब आया है मैंने तो डूबती आँखों में बहाव पाया है गिरते घर खड़े पेड़ों
Read Moreकुर्बानियों के बाद का अंजाम तिरंगा । हो जाए न तुमसे कहीं बदनाम तिरंगा ।। सड़कों पे जुर्म की
Read Moreअंदाज कातिलों के बेहतरीन बहुत हैं । कुछ शख्स इस शहर में नामचीन बहुत हैं ।। वो
Read Moreमंगलकामना के साथ रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ *************************************** सलामती की दुआ मै करती रहूँगी तुम्हारी कलाइयों में रक्षा की राखी,
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