कविता : अजनबी
एक अजनबी और, कभी अपना सा, दिल की देहरी पर जो, दस्तक देता है बार बार। अजीब सी कश्मकश है,
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Read Moreमैं अनबूझ पहेली हूँ खुद की ही सहेली हूँ होते हैं सभी संग मेरे लाखों में भी अकेली हूँ तेरी
Read More१-आधुनिकता नीलामी संबंधों की खुली दुकान। —— २-बुरा करम खुशहाल जीवन मन का भ्रम । —— ३-सुन्दर तन कनक घट
Read Moreएक आॅटो टूटा फूटा सा जो जोर से आवाज करता है ना कोई तेजी न कोई ताकत है रोज हजार
Read Moreकाश! मैं एक बच्चा होता अकल का जरा कच्चा होता मन का बहुत सच्चा होता न जाने कितना अच्छा होता
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