लघु उपन्यास – षड्यंत्र (कड़ी 1)
गुरु द्रोणाचार्य के दीक्षान्त समारोह की चर्चा पूरे हस्तिनापुर में हो रही थी। कौरव और पांडव राजकुमारों ने अपने कला-कौशल
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Read More2019 ने खुशियाँ दी, तो संताप भी ! 2020 सचमुच में विष-विष का ट्वेंटी-ट्वेंटी (20 20) साबित हो रहा, किन्तु
Read Moreसाधना को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुए लगभग एक महीने का समय हो चला था । जीता जागता खिलौना पाकर
Read Moreधूल भरी सड़क में गड्ढों के बीच राह तलाशते हुए जमनादास की कार ने जब सुजानपुर में प्रवेश किया सूर्य
Read Moreरामू काका के मुँह से सुजानपुर और फिर मास्टर सुनते ही जमनादास अधीरता से बंगले के मुख्य दरवाजे की तरफ
Read Moreपरबतिया के जाने के बाद साधना के होठों पर आई हुई मुस्कान ने एक बार फिर खामोशी की चादर ओढ़
Read Moreसेठ अम्बादास अपने वादे के मुताबिक दूसरे दिन फिर आये थे । उनके साथ उनका लीगल एडवाइजर गुप्ताजी भी थे
Read Moreभूमिका अर्थात आने वाली घटनाओं के लिए पृष्ठभूमि पूर्व से स्वतः ही बनने लगती है। गीता में भगवान कृष्ण ने
Read Moreसेठ अम्बादास ने अपनी कहानी जारी रखी ! ” हमेशा की तरह इस बार भी हम छुट्टियाँ मनाने के लिए
Read Moreनजदीक आकर सेठ शोभलाल ने एक विजयी मुस्कान बृन्दादेवी की तरफ उछाली और बड़ी खुश मुद्रा में उनकी बगल में
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