अमर लेखनी
कितनों ने किया है त्याग , कितनों ने किया बलिदान। कितने मर कर जीवित है, कितनों का मिटा निशान।। लेखनी
Read Moreजागरूकता, प्रगतिशीलता, समानता, स्वतंत्रता रह जाते केवल नारे हैं अंधविश्वास, परंपराओं, समाज व धर्म से जो हारे हैं किनारे पर
Read Moreसंध्या की बेला है, या है सुरीला नग़मा, या कि लगा हुआ है सजीले रंगों का मजमा, सुनहरी-रुपहली, लाल-पीले रंगों
Read Moreप्रेम दीपक जलाए रखिए, प्रेम की रोशनी पाते रहिए, लुटाते रहिए. लीला तिवानी “कहां जा रही हो?” सूरज-किरण से
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