क्षणिकाएं
नदियां सैलाबों से लबालब हैं इंसान भावनाओं के सैलाब से कब लबालब होगा वहां तो भावनाओं के सैलाबों का सूखा
Read Moreजागरूकता, प्रगतिशीलता, समानता, स्वतंत्रता रह जाते केवल नारे हैं अंधविश्वास, परंपराओं, समाज व धर्म से जो हारे हैं किनारे पर
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