ताँका छँद
सृजक आज क्या सृजन करता कैसे समझें बेसिर पैर बातें बस पन्ने रंगता। *** घोर निराशा मन में व्याप्त है
Read Moreप्यारी नदियाँ ******* 1. नद से मिली भोरे-भोरे किरणें छटा निराली। 2. गंगा पवित्र नहीं होती अपवित्र भले हो मैली।
Read More1. नील गगन पुकारता रहता – पाखी, तू आ जा! 2. उड़ती फिरूँ हवाओं संग झूमूँ बन पखेरू।
Read Moreआज की शिक्षा औपचारिक बनी संस्कार नहीं। ***** आधुनिकता हावी होती जा रही ये कैसी शिक्षा। ***** संस्कार बिन व्यर्थ
Read Moreतपती धूप जान ले लेगी जैसे दम निकला। ***** हाय रे गर्मी चैन न पल भर दम घुटता। —— ऐसा
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