बौराती प्रकृति, कुत्ते और राम लुभाया
फागुन में पहले प्रकृति बौराती थी। फिर आम्र मंजरियां बौराती थीं। फिर पोपले मुंह और पिलपिले शरीर वाले सत्तर-पचहत्तर साल
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Read Moreमैने कॉलेज की पढाई सफलता पूर्वक पूरी कर ली । पढ़ना इसलिए जरूरी है जिससे कोई काम मिल सके ।
Read Moreमैं सोकर ही उठा था कि दस-बारह लड़कों ने मेरा घर घेर लिया। मैंने सवालिया निगाहों से उनकी ओर
Read Moreफागुन का महीना, देवरों पर होली के साथ-साथ चुनावों का भी खुमार, और सामने प्यारी सी सलोनी सी भाभी- ऐसे
Read More#बदहाल साल :: व्यंग्य पड़ताल# (पोस्टमार्टम:2016) विनोद कुमार विक्की जो बीत गई सो बात गई लेकिन सच तो ये है
Read Moreकहते हैं कि मानो तो देव, नहीं तो पत्थर तो हैं ही। मानिए तो बहुत बड़ी उलझन है, न मानिए,
Read Moreचुनाव नजदीक था I हवा में महासंग्राम कर धुंआ फैल चुका था और वातावरण में उत्तेजना की गर्मी I महाभारत
Read Moreमैं यों ही बाजार की तरफ चला जा रहा था कि सामने से हमारे मौहल्ले का कलुआ आता दिखाई पड़ा।
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