ग़ज़ल
सबके मन की गांठें खोले साल नया बिखरे रिश्तों को फिर जोड़े साल नया भूखे को दे रोटी, निर्धन को
Read Moreइन्सानियत दम तोड़ती है हर गली चौराहे पर ईट गारे के सिबा इस शहर में रक्खा क्या है इक नक़ली
Read Moreगज़ल(हिम्मत साथ नहीं देती है) किसको अपना दर्द बतायें कौन सुनेगा अपनी बात सुनने वाले व्याकुल हैं अब अपना राग
Read Moreतुझे पा लिया है जग पा लिया है अब दिल में समाने लगी जिंदगी है कभी गर्दिशों की कहानी
Read Moreगज़ल (शून्यता) जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता
Read Moreमैं माफ़ी चाहता हूँ, मुनव्वर राणा साहब से, क्योंकि इस ग़ज़ल का रदीफ़ और काफ़िया उन्हीं की एक ग़ज़ल से
Read Moreसपनीली दुनियाँ मेँ यारो सपने खूब मचलते देखे रंग बदलती दूनियाँ देखी, खुद को रंग बदलते देखा सुविधाभोगी को तो
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