कविता

कुछ सपनें टूट गए तो क्या

कुछ सपनें टूट गए तो क्या
कुछ अपने रूठ गए तो क्या
जीवन के ……दुर्गम पथ पर
कुछ साथी छूट गए तो क्या

सूरज तो फिर भी निकलेगा
नयी सुबह फिर भी आएगी 
फिर भोर करेगें पक्षी करलव
फिर पवन सुगंध फैलाएगी
यह अंधकार फिर भी हारेगा 
कुछ तारे टूट गए तो क्या
जीवन के ……दुर्गम पथ पर
कुछ साथी छूट गए तो क्या

हर्ष, व्यथा दोनों में बहेंगे
तुम पर निर्भर कैसे बहाओ
ह्रदय तेज से अश्रु सुखा दो
आँखों का पानी पी जाओ
सोच कांच का उन्हें भुला दो
कुछ बरतन फूट गए तो क्या
जीवन के ……दुर्गम पथ पर
कुछ साथी छूट गए तो क्या

तुमनें कुछ खोया तो क्या
सबके मुख पर मुस्कान रही
प्रेम ही तो बस मिला नहीं
दुनिया भर की तो शान रही
प्रेम अमर तो हो जायेगा
प्रियतम रूठ गए तो क्या
जीवन के ……दुर्गम पथ पर
कुछ साथी छूट गए तो क्या

शोक त्याग कर आगे बढ़ो
तुम पर सब कुछ निर्भर है
कभी नहीं वह मनु हारा है
जो दृढ इक्षित हो तत्पर है
संकल्प तुम्हारे पास है ना
धन अपने लूट गए तो क्या
जीवन के ……दुर्गम पथ पर
कुछ साथी छूट गए तो क्या

संघर्ष को ही जीवन समझो
काँटों से भरा उपवन समझो
व्यर्थ के सारे… दर्शन छोड़ो
बस आत्मा को दर्पण समझो
शाश्वत सत्य ..तो पास रहा
थोड़े से झूठ ….गए तो क्या
जीवन के ……दुर्गम पथ पर
कुछ साथी छूट गए तो क्या

कुछ सपनें टूट गए तो क्या
कुछ अपने रूठ गए तो क्या
जीवन के ……दुर्गम पथ पर
कुछ साथी छूट गए तो क्या
____________अभिवृत

One thought on “कुछ सपनें टूट गए तो क्या

  • विजय कुमार सिंघल

    सुन्दर गीत, अक्षांश जी. साधुवाद !

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