राजनीति

ईराकी इस्लामी युद्ध और भारत पर उसका प्रभाव

ईराक में जो खूनी खेल चल रहा है उसका तो अल्लाह ही मालिक है, वो मालिक इसलिए कि सारा खेल ही उसी के नाम पर हो रहा है, इस्लाम, जिसकी वजह से लिबरल मुस्लिम पूरी दुनिया में शर्मशार होते है और दूसरे सम्प्रदाय के कट्टरपंथियों का निशाना.

पहले ये जान ले कि ईराक में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है? तो सीधा सीधा वो कह रहे है कि “इस्लामिक राज्य” . पत्रकार या मिडिया इसके पीछे अमेरिका का हाथ बताते नहीं थकते, अगला जोर जोर पूरे गले फाड़ कर कह रहा कि वो ये सब इस्लाम के लिए कर रहा लेकिन कमाल है किस वहाशियाने ढंग से “अमेरिका छाप” दलील द्वारा डिफेंड किया जा रहा है कि दिमाग फेल हो जाए. लेकिन ध्यान दें अमेरिका का क्या सरोकार, सद्दाम को ख़त्म कर उसने अपनी ताकत दिखा दी थी, ईराक में वर्तमान सरकार रहे या इन सुन्नियो की, फिर भी अमेरिका को तेल की कोई चिंता नहीं. उसके लिए तो सब बराबर है यदि हम इस “अमेरिका छाप” दलील माने तो.

इसलिए उसने दखल देने से फिलहाल हाथ खड़ा कर लिया है. उसे अच्छी तरह मालुम है कि दो बंदरो के बीच के लड़ाई में उसे नहीं पड़ना है, बल्कि फायदा उठाना है. कुछ मुस्लिम ये भी दम भरते है कि बराक हुसैन मुस्लिमान है, फिर जब भी कहीं विश्व में कुछ भी मुस्लिम में खिलाफ हो तब भी बड़ी चालाकी से अमेरिका के मत्थे मढ़ दिया जाता है. मुस्लिमान अपने फेवर में ओबामा का चरित्र (मुस्लिम होंना) जैसे चाहे बताते है, मुस्लिम ताकत दिखानी हो तो वो भी मुसलमान है, और जब बिना कारण इस्लाम के नाम पर लड़ाई हो तो तो वो इस्लाम का दुश्मन है.

चलो मान लेता हु इसके पीछे अमेरिका का हाथ है, तो फिर बर्मा में क्या हो रहा है? श्रीलंका? वहां अमेरिका का क्या हित हो सकता है? ये तो छोडिये जनाब पकिस्तान और अफगानिस्तान पर नज़ारे इनायत कीजिये. हिन्दुस्तान में मोदी और विश्व में अमेरिका को मीडिया/पत्रकारों  ने कुछ इस तरह का गढ़ा है मानो मोम के हो, जहाँ चाहे थोडा सा गरम कर फिट कर दो.शुक्र मनाईये दोनों ही अपनी अपनी जगह मजबूत है, नहीं तो पता नहीं दोनों का इस्लामिस्ट क्या कर बैठते.

भारत में भी मुसलमानो का पर्सनल ला अलग है? तो जरा ये बताएं कि ये इस्लाम के नाम पर है कि इसके पीछे भी अमेरिका का हाथ है? जब इसके पीछे अमेरिका नहीं तो कहीं भी कुछ भी हो, मुह उठा के अमेरिका वाली दिशा में थूक देने से सच्चाई तो नहीं बदलेगी न? कुछ अधिकार चाहिए किसी भी  देश के कानून से अलग तो इस्लाम की वजह से, और इस्लामी कहीं कुछ उत्पात करे तो अमेरिका की गोद है न, फेंक दो गलती? गजब का तर्क है यार.

चलो मान लिया कि इसके पीछे अमेरिका है, तो उसका सिक्का बस इस्लामी देशो में ही क्यों चलता है ? सोवियत के पास भी अब तेल के बड़े भण्डार है, साथ कुछ अन्य यूरोपियन देशो के पास भी उनके तेलों में क्या कीड़े पड़े है? नहीं, अमेरिका को अच्छी तरह मालुम है कि कौन से धर्म के नाम पर किसको आसानी से भडकाया जा सकता है.

चलो जी अब कुछ कह रहे है ये सत्ता की लड़ाई है. जी हाँ, इस्लाम का उद्देश्य ही क्या है फिर? मोहम्मद साहब के बाद इस्लाम का दुरुपुयोग बस सत्ता के लिए ही किया गया, यहाँ तक कि इस्लाम के नाम पर उनके पुरे परिवार की हत्या कर दी गयी, ताकि सत्ता हथियाया जा सके. हर जगह हर तरफ, पुरे विश्व में.

बेवजह अमेरिका, सऊदी अरब या ईराक के सुन्नियों को दोष क्यूँ दें, सीरिया में तो 2 लाख से ज्यादा मुसलमान मरा है , वहां इस नरसंहार का दोष शियाओं पर था. जहाँ जिसका दाव लगा उसने सामने वाले को मार दिया पर एक बात पक्की है , जिसने भी मारा, मारा इस्लाम के नाम पर, जेहाद के नाम पर, न सुन्नी, न शिया और न वहाबी, इन सभी हत्याओं का दोष जिहाद पर है, इस्लाम पर है.

क्या इन सब का भारत पर प्रभाव पढ़ेगा? क्या यहाँ भी कुछ सुगबुगाहट होगी? जबकि आई एस ई एस के लोगो ने विडिओ बना भारत के मुसलमानों का भी आह्वान किया है. क्या यहाँ कोई व्यक्ति/कोई संघटन उनके साथ हो के भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ने की तयारी कर सकता है? ध्यान रहे हमारे यहाँ सिमी जैसे प्रतिबंधित संघठन भी है, और एक पुराना तथा वर्तमान इतिहास भी.

क्यों कि इस्लाम को मानने वाले पुरे विश्व में है जैसा कि हर मुस्लिम ८६ इंच का सीना तान के कहता है, लेकिन पुरे विश्व को देखिये क्या हो रहा है वहां. मुझे बड़ा अजीब लगता है जब भारत में भी मुस्लिम कहते हैं “हम पुरे विश्व में है” तो जब भी कहीं पुरे विश्व में इराकी घटना हो तो आपसे क्यों न जोड़ा जाए ? फिर ये कहाँ कहाँ तक जायज है कि ये हिन्दुस्तान है ? यहाँ ऐसा कुछ नहीं हो सकता ? जबकि हुआ है, कश्मीर में कश्मीरी सेना बस इसीलिए पाकिस्तानियों से मिल गयी थी कि वो मुसलमान थे, और ठीक यही ईराक मे हो रहा है, सुन्नी समुदाय इन इस्लामी आतंकियों के साथ इसलिए हो गया है कि ये इस्लामी आतंकवादी सुन्नी है.

चलिए जी माना सत्ता की लड़ाई है, तो ये जो आम इराकी सुन्नी इन इस्लामी आतंकियों के साथ मिल रहे उन्हें तो सत्ता का भागीदार बनाने से रहे ये इस्लामी आक्रमणकारी ? तो फिर ?? तो जाहिर ये बस इस एहसास के उनके साथ है कि वो इनके जमात के हैं. नहीं तो १० -२० हजार के इस्लामी दहशत गर्द किसी भी देश को बंदी बना लें ये असम्भव है, जब तक वहां की अवाम साथ न हो.

जब भी कहा जाता है भारत में इस्लाम तलवार के बल पर फैला तो मुस्लिम तिलमिला जाते है. अरे मानिए न कि सत्ता की लड़ाई थी. मुस्लिमो दवारा न कि इस्लाम के लिए, तो साहब खरबूजा चाक़ू पे गिरे या चाक़ू खरबूजे पर कटता खरबूजा ही है. इस्लाम को कुछ इसी तरह का हथियार बना गया.

विश्व में कहीं कुछ भी हो तो भारतीय मुसलमान ये आशा करते है कि उन्हें उसमे न घसीटा जाय, और ये उनकी आशा वाजिब भी जिसका हमें सम्मान करना चाहिए, लेकिन तभी याद आता है, इस्लाम ब्रदरहुड के नाम पर मुंबई में तोड़ फोड़ जो कि कही दूर बर्मा में हुआ था, कही श्रीलंका में हुआ था, अब ईराक के लिए भी पर्चे साइन कराये जा रहे है तो भाई अब सोचो कि आपकी आशा जायज है या ना जायज. मुझे नहीं याद है कि पाकिस्तान में हुए हिन्दू उत्पीडन के मामले में किसी भारतीय मुस्लिम को कोप झेलना पडा हो, किसी बंगलादेशी मुस्लिम की सजा यहाँ हिन्दुस्तान में मिली हो, अफगानिस्तान में बुद्ध की मूर्तियाँ तोड़ने पर किसी बुद्धिस्ट का कोप भाजन किसी देश में कोई मुस्लिम हुआ हो, जबकि बाबरी गिरने के ठीक बाद हर इस्लामी मुल्क में  हिंदुवो के ऊपर भयंकर गाज गिरी, खून के आंसू रुलाया गया, उनको पाकिस्तानी, बांग्लादेशी नहीं, बल्कि हिन्दू माना गया.

भारत के मुसलमान भी अमेरिका को गरियाते है लेकिन याद है कि इन्ही लोगो ने अमेरिका को मोदी के लिए वीसा ना देने का पत्र लिखा था, और यदि आज भी बस चले तो मोदी को कुचलने के लिए किसी दुसरे देश की सेना मंगा ले.

इस इराकी इस्लामी आतंकवाद में भी भारत के मुसलमान पर्चे साइन करा रहे है “शहादत” के लिए, जिनका उस अरब कंट्री से कुछ लेना देना भी नहीं है, तो जरा सोचिये, किसी खुराफाती तत्व की वजह से इश्वर न करे उंच नीच हो गयी या मुस्लिम और गैरमुस्लिम में जरा सा भी तनाव हुआ तो क्या यही पत्र इस्लामी देशी में नहीं जाएगा कि  भारत आओ हमारी मदद करो, गैर मुस्लिमो को ख़त्म करो. और वो तो तैयार बैठे हैं, विडियो भी बनवा के भिजवा दी कि करो भाईयो हम बैक अप देते है.

सरकार को तत्काल ऐसे लोगो पर लगाम लगनी चाहिए जो इंसानियत नहीं बल्कि मुसलमानियत के नाम पे ऐसी हरकत कर रहे है, यदि ये इंसानियत के नाम पे पहल करते तो सबसे आह्वान करते, मुस्लिम गैर मुस्लिम सभी से और सबको मिलकर सरकार पर दबाव बनाते कि ईराक में कुछ करो इंसानियत के लिए.  ये पर्चे साइन करा शहादत के लिए आह्वान  करना “डाइरेक्ट एक्शन” जैसा कुछ नहीं लगता ? किसी देश में कुछ भी हो तो वो वैश्विक स्तर और राजनैतिक स्तर पर बात चित होती नहीं की इस्लामी विचार धारा के अनुरूप.

होना तो ये चाहिए की इस्लाम के नाम पर होना विश्व में कहीं भी कुछ गलत हो आप मुस्लिम आगे आयें और सबका साथ मांगे, सोचिये हम भारतीयों का सर गर्व से कितना ऊँचा उठेगा, हम सीना ठोक के दुसरे मुल्को के ऊपर लानत भेज सकते है कि हमारे मुल्क का मुस्लिम पहले इंसान है उसे विधर्मियो से भी परहेज नहीं मानवता के लिए काम करने को, लेकिन नहीं, आप तभी एक्टिव होते है जब विश्व में कही मुस्लिमो पे गाज गिरी हो और एक्टिव भी बस मुस्लिम ही होते है, क्या मुस्ल्मानियत इंसानियत से ऊपर है ? क्या इस्लाम ये सिखाता है कि जब मुलमान परेशान है तभी आप परेशान हो, क्या इस्लाम ये सिखाता है की कोई गैर मुस्लिम चाहे कितना भी जहीन हो और वो परेशान हो तो आप इन्तजार करो की कब मुस्लिम परेशान होता है ?

क्या आप लोगों को लगता है कि गैरमुस्लिम आपका साथ नहीं देगा तो, लानत है आपके सोच पर. भारत की बहुसंख्यक जनता इस इन्तजार में बैठी है कि वो कब अपने को भारतीय माने और हमारे गले लगे बजाय कि काफिर कहने के. हम ये मानते है कि मस्जिद का गिरना गलत था, मस्जिद हो या मंदिर हो, चर्च हो गुरुद्वारा जो भी चींजे भारत में है वो हर भारतीय की विरासत है, उसे सम्हालने की जिम्मेदारी सभी भारतियों की है, न की किसी हिन्दू, मुस्लिम सिख इसाई की.

विश्वास  कीजिये मेरा इरादा किसी का दिल दुखाना नहीं है, लेकिन मेरे मुआज्जिज दोस्त इस पर कुछ बोल नहीं रहे तो लिखना पड  रहा है, इसकी वजह से किसी का दिल दुखे तो मै माफ़ी मांगता हु, क्योंकि कोई मेरे लिए हिन्दू – मुस्लिम इसाई सिख बाद में है, पहले वो मेरे लिए इंसान है.

सादर
कमल कुमार सिंह

2 thoughts on “ईराकी इस्लामी युद्ध और भारत पर उसका प्रभाव

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लिखा है. आपने भारतीय मुसलमानों की संकीर्ण सोच की बखिया उधेड़ कर रख दी है. बधाई.

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