कविता

पथिक तुम्हे जाना कहाँ है

पथिक तुम्हे जाना कहाँ है

मार्ग ये अवरुद्ध है

जन आज जन से क्रुद्ध है

पथिक तुम्हे जाना कहाँ है

मार्ग ये अवरुद्ध है

 

व्यर्थ का प्रलाप है ये

व्यर्थ का विलाप है

एक सिरे विछोह है तो

एक तरफ मिलाप है

क्या तुम्हे पाना यहाँ है

मार्ग ये अवरुद्ध है

 

हैं बदलते युग निरंतर

नित नयी एक खोज है

अंतर्द्वंद फिर भी हृदय मैं

सदियों पुरानी सोच है

सबको तुम्हे लाना यहाँ है

मार्ग ये अवरुद्ध है

 

आरोपी किसको कहो जब

स्वं निर्मित कृत्य है……

जीवन की परिधि के भीतर

मृत्यु ही बस सत्य है ….

तुमने पहचाना कहाँ है

मार्ग ये अवरुद्ध है

 

जन आज जन से क्रुद्ध है

पथिक तुम्हे जाना कहाँ है

मार्ग ये अवरुद्ध है

 

अभिवृत

One thought on “पथिक तुम्हे जाना कहाँ है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता. बधाई !

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