लघुकथा

लघुकथा : बच्चे मन के सच्चे

एक बार एक गाँव में एक बुढिया रहती थी । बहुत ही नेक और सरल थी । अपने सक्रिय जीवन काल में वो सबकी मदद किया करती थी । तन – मन और धन से जरूरत मंद लोगो की सेवा किया करती थी । अब उसकी असक्त अवस्था में उसके बेटे बहु उसकी देखभाल ठीक से नहीं कर रहे थे ।

ये सब देख रहा था नन्हा गप्पू । गप्पू को जब उसकी मम्मी कुछ भी खाने को देती तो वह पेट दर्द का बहाना बनाकर नहीं खाता था और किसी तरह अपनी मम्मी को पटा लेता था कि वो अपने कमरे में ले जाकर बाद में खा लेगा । इस तरह वो अपने हिस्से की हर चीज दादी को खिला देता था । इसमें उसका साथ देता था उसका नौकर रामू । रामू रसोई में से खाना लाकर गप्पू को दे देता था ।

गप्पू को आखिर डॉ के पास ले जाने की बात उसकी मम्मी ने गप्पू के पापा से कही । डॉ के नाम से ही गप्पू थरथराने लगता था । आखिर उसने अपनी मम्मी- को बोल दिया कि ” मेरा कोई पेट दर्द नहीं है , आप दादी का ध्यान ठीक से नहीं रखते हो , जो चीजे मुझे खाने को देते हो वो दादी को क्यूँ नहीं देते हो और आप दादी को दूध भी नहीं देते थे इसलिए मैंने झूठ – मुठ का नाटक किया । गप्पू के मम्मी – पापा नन्हे गप्पू की बातो से समझ गये की बच्चे मन के सच्चे होते है । उनकी सरलता और सच्चाई के आगे बड़े भी नत हो जाते हैं।

 

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

4 thoughts on “लघुकथा : बच्चे मन के सच्चे

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वैसे भी बच्चे दादा दादी से बहुत पियार करते हैं . ऐसी बहुत सी कहानिआ हैं जिन में बच्चों ने अपने माँ बाप की सोच को बदल डाला और दादा दादी को इन्साफ दिलाया . अच्छी कहानी .

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, गुरमेल जी.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा. बच्चे वास्तव में मन के सच्चे होते हैं.

    • शान्ति पुरोहित

      धन्यवाद, भाई.

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