कविता

मेरा प्रियतम

न कभी बताता
हर वक्त छुपाता
छिप छिपके देखता
जब नजर मिलते
तब नजर झुकाता
जब तुम अकेले हो
तब मुझे ढूंढ़ता
हंसी और मजाक से
दिल को छूमता
कभी कभी करते प्यार की बातें
कभी तुम रहते मेहमान जैसे
रहनहीं पाती तेरी निष्ठुरता
जमाने से छिप छिपके नैन भी आंसू बहाते
कभी मैं सोचती न तुम्हें ढूंढ़ती
मगर नजर मेरी तुम्हीं को ढूंढ़ती
जाति से धर्म से फायदा न मुझे
जिंदगी भर सनम तुम्हीं को चाहती

नलिका दुलांजली, श्रीलंका

2 thoughts on “मेरा प्रियतम

  • शान्ति पुरोहित

    सुंदर सृजन नलिका आपका बधाई

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. भावनाओं का सीधा सरल प्रकटीकरण !

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