लघुकथा

क्या आप स्वामी हैं अथवा सेवक हैं?

एक गांव में एक व्यक्ति रहता था जिसके पास एक घोड़ा था। उस व्यक्ति ने अपने घोड़े की सेवा करने के लिए एक सेवक रखा हुआ था। वह सेवक हर रोज प्रात: चार बजे उठता, घोड़े को पानी पिलाता, खेत से घास लेकर उसे खिलाता,चने भिगो कर खिलाता और उसका शौच हटाता, उसे लेकर जाने के लिए तैयार करता, उसके बालों को साफ करता, उसकी पीठ को सहलाता। यही कार्य सांयकाल में दोबारा से किया जाता। इसी दिनचर्या में पूरा दिन निकल जाता। अनेक वर्षों में सेवक ने कभी घोड़े के ऊपर चढ़कर उसकी सवारी करने का आनंद नहीं लिया। जबकि मालिक प्रात: उठकर तैयार होकर घर से बाहर निकलता तो उसके लिए घोड़ा तैयार मिलता हैं । वह घोड़े पर बैठकर, जोर से चाबुक मार मार कर घोड़े को भगाता था और अपने लक्ष्य स्थान पर जाकर ही रुकता था। चाबुक से घोड़े को कष्ट होता था और उसके शरीर पर निशान तक पड़ते मगर मालिक कभी ध्यान नहीं देता था। मालिक का उद्देश्य घोड़ा नहीं अपितु लक्ष्य तक पहुँचना था।

जानते हैं कि मालिक कौन हैं और सेवक कौन हैं और घोड़ा कौन हैं? यह मानव शरीर घोड़ा हैं। इस शरीर को सुबह से लेकर शाम तक सजाने वाला, नए नए तेल, उबटन, साबुन, शैम्पू, इत्र , नए नए ब्रांडेड कपड़े, जूते, महंगी घड़ियाँ और न जाने किस किस माध्यम से जो इसको सजाता हैं वह सेवक हैं अर्थात इस शरीर को प्राथिमकता देने वाला मनुष्य सेवक के समान हैं। वह कभी इस शरीर का प्रयोग जीवन के लक्ष्य को सिद्ध करने के लिए नहीं करता अपितु उसे सजाने-संवारने में ही लगा रहता हैं, जबकि वह जानता हैं की एक दिन वृद्ध होकर उसे यह शरीर त्याग देना हैं। जबकि जो मनुष्य इन्द्रियों का दमन कर इस शरीर का दास नहीं बनता अपितु इसका सदुपयोग जीवन के उद्देश्य को, जीवन के लक्ष्य को सिद्ध करने में करता हैं वह इस शरीर का असली स्वामी हैं। चाहे इस कार्य के लिए शरीर को कितना भी कष्ट क्यों न देना पड़े, चाहे कितना महान तप क्यों न करना पड़े, यम-नियम रूपी यज्ञों को सिद्ध करते हुए समाधी अवस्था तक पहुँचने के लिए इस शरीर को साधन मात्र मानने वाला व्यक्ति ही इस शरीर का असली स्वामी हैं।

आप स्वयं विचार करे क्या आप स्वामी हैं अथवा सेवक हैं?

डॉ विवेक आर्य

3 thoughts on “क्या आप स्वामी हैं अथवा सेवक हैं?

  • विजय कुमार सिंघल

    इस लेख से पूरी तरह सहमत नहीं हुआ जा सकता. हमारा शरीर हमारा एक साधन या उपकरण है. आप चाहे तो इसे वाहन मान सकते हैं. लेकिन वहां के लिए केवल पेट्रोल डाल देना ही पर्याप्त नहीं है, समय समय पर उसकी सफाई और रखरखाव भी करना पड़ता है. नहीं तो उसका जीवन समय से पहले ही समाप्त हो जायेगा.
    शास्त्रों में कहा गया है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनं’ अर्थात् यह शरीर धर्म का एक साधन है. इसलिए इसको स्वस्थ रखना भी हमारा धर्म है. हाँ, हमें केवल शरीर को सजाने में ही नहीं लगे रहना चाहिए, बल्कि आत्मिक उन्नति भी करनी चाहिए.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    डाक्टर साहिब , मेरी सोच यह है कि ना तो मैं अपनी इन्द्रीओं का गुलाम हूँ , ना ही हुक्मरान हूँ जो इसे दौडाता रहूँ . मैं तो एक साधारण इंसान हूँ जिस ने सारी उम्र इमानदारी से काम किया , अपने बच्चों को पदाया लिखाया , अपने शरीर रूपी घोड़े को साफ़ और सिहत्मंद रखने के लिए जो लोग करते हैं वोह ही किया . मरना तो हर प्राणी ने है , यह तो कोई ऐसी बात नहीं कि कोई नहीं जानता . हमारे बच्चे हुए , बच्चों के बच्चे भी हो गए , यह तो एक कर्म है जिस से संसार आगे बढता है . इस में जो धार्मिक सोच है वोह हर किसी का अपनि है . मर कर कहाँ जाना है किया होना है , हमें अपने अपने कर्मों की सजा मिलेगी , किसी को स्वर्ग में जगह मिलेगी यह अपने अपने धर्म के मुताबक ही लोग सोचते हैं जैसे इस्लाम में हूरों की आशा करते हैं , हमारे योगी आवागवन के झंजत से छुटकारा पाने के लिए भागती करते हैं . इसाई सिर्फ एक दिन ऐतवार को ही चर्च में जाते हैं . मेरी सोच यही है कि घोड़े सेवक का रिश्ता सोचना सही नहीं है .

    • विजय कुमार सिंघल

      मैं आपसे सहमत हूँ, भाई साहब.

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